भारतवर्ष में कई संस्कृतियों का समावेश है ऐसे में कई
विचारधाराओं एवम् मान्यताओं के आधार पर भिन्न – भिन्न
व्रत और त्यौहार मनाये जाते हैं। यहाँ मैं उस व्रत के विषय में बताने जा रही हूँ
जिसे सुनते ही सभी सुहागिन स्त्रियाँ खुशी से झूमने लगतीं हैं। सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति के लम्बी उम्र की कामना
करतीं हैं। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त
नक्षत्र के दिन मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन और कुवांरी
युवतियां गौरीशंकर की पूजा करती हैं। इसे ‘हरितालिका’ व्रतकहा
जाता है। यह त्यौहार विशेषकर महारास्ट्र, उतरप्रदेश
के पूर्वांचल भाग और बिहार में मनाया जाता है। इस व्रत
के दिन स्त्रियाँ निर्जला उपवास रहतीं हैं तथा अगले दिन पूजन के पश्चात् ही वे
अपना व्रत खोलतीं हैं। इस व्रत से जुड़ी हुई यह
मान्यता है कि इस व्रत को करनेवाली स्त्रियाँ पार्वती जी के समान ही सौभाग्यवती
होतीं हैं। इसलिए विवाहित स्त्रियाँ अपने सुहाग की अखंडता के लिए
और अविवाहित युवतियां मन चाहा वर पाने के लिए ‘हरितालिका’ व्रत
करती है। इस व्रत को ‘हरितालिका’ इसलिए
कहा जाता है क्योंकि पार्वती जी के सखिओं ने उन्हें, उनके
पिता के घर से हर कर (चुरा कर) घनघोर जंगल में ले गई थीं। वहाँ पर
पार्वती जी ने छिपकर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर पार्वती जी को शिव जी ने
आशिर्वाद दिया और पति के रूप में मिलने का वरदान दिया। ‘हरत’ शब्द ‘हरन’ या ‘हरना’ क्रिया
से लिया गया है अथार्त हरण करना और यहाँ ‘आलिका’ शब्द ‘आलि’ अथार्त
सखी शब्द से लिया गया है। इसप्रकार इस व्रत का नाम
हरतालिका पड़ा।
इस ब्रत में सभी हम उम्र सुहागिने एक साथ मिलकर पूजा
अर्चना करती हैं जिससे सहेलियों का भी महत्व यहाँ बढ़ जाता है।
सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भागवान शिव के लिए रखा था। इस दिन व्रती स्त्रियाँ सूर्योदय से पहले उठकर सरगही
खाती हैं और बाद में पुरे दिन भर उपवास रखकर शाम के समय नया वस्त्र पहनकर पूरी
सोलहों श्रृंगार करती है और शंकर पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजा – पाठ
करतीं है। व्रत के नियमानुसार स्त्रियाँ पूरी रात सोती नहीं हैं। सभी सुहागिने मिलकर भजन – कीर्तन
करतीं हैं और सुबह सूर्योदय से पूर्व नहा–धोकर, पूजा–अर्चना
करने के बाद सुहाग के सभी समान और सत्तु लेकर व्रत खोलने के लिए तैयार होती हैं। पहले सुहाग के सभी समान को छूकर रख देतीं हैं जिसे बाद
में पंडित को दान में दे दिया जाता है फिर सत्तु को पांच बार आंचल में लेकर फांकते
है और इस तरह से 24 घंटे का अपना निर्जला उपवास तोड़ती हैं। वैसे तो
अलग–अलग क्षेत्रों में लोग अपनी–अपनी अलग
विधियों का पालन करते हैं फिर भी भाव और उद्देश्य एक होने के कारण उनकी प्रक्रिया
लगभग एक जैसी होती है। सबसे बड़ी बात यह है कि एक
बार इस व्रत को शुरू करने के बाद जीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना पड़ता है। अगर किसी कारण वश व्रत छुट जाता है तो दुबारा नहीं किया
जा सकता है। इस व्रत का यही विधान है।
हमारे देश के कई राज्यों में सुहागिन स्त्रियां पति के
दीर्घ आयु के लिए अलग - अलग तरह से व्रत करती हैं। सभी
व्रतों से सम्बंधित कोई न कोई कहानी जुड़ीं हैं। सभी के
व्रतों में एक समानता यह है कि इसमें शिव और पार्वती की पूजा की जाती है लेकिन मास
और तिथि तथा व्रत करने की विधि में थोड़ा-थोड़ा फर्क होता है। जैसे – कजरी तीज – यह पूर्व भाद्र पक्ष की तृतीय को मनाई जाती है। हरियाली तीज – इसे
श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। गणगौर
पूजा – जो होलिका दहन के दूसरें दिन चैत्र कृष्ण प्रतिप्रदा से
शुरू होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलता है। करवा
चौथ – यह पर्व पंजाब हरियाणा, राजस्थान
तथा उतरप्रदेश के कुछ भागों में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया
जाता है।
हमारा भारतवर्ष विभिन्नता में एकता का देश है। सौहार्द एवं आपसी सहयोग के कारण ही हमारे देश की
विश्व में एक अलग पहचान है। यहां के
पर्व-त्योहारों की समृद्ध परंपराएं की एक अपनी विशेष पहचान है। इन सभी त्योहारों में हमारे देश की सांस्कृतिक
विविधता झलकती है।
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