Saturday 14 October 2017

'महामानव' पंडित दीनदयाल उपाध्याय


भारत में आजादी के पहले और आजादी के बाद कई महान सपूत हुए जिन्होंने अपने बूते पर समाज को बदलने की कोशिश की, उन्ही सपूतों में से एक थे भारतीय जनता पार्टी के मार्ग दर्शक और नैतिक प्रेरणा के स्रोत पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी पंडित जी ने अपने चिंतन और कार्य से केवल भारत माता का ही मस्तक ऊँचा नहीं किया बल्कि उनके द्वारा दिए गए ‘एकात्म मानववाद’ के दर्शन आज पूरे विश्व को एक जुटता के स्रोत में बांध रहा है

पंडित जी बहुत ही सरल और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे वे महान चिंतक प्रखर विचारक और उत्कृष्ट संगठनकर्ता थे उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को नये युग के अनुरूप प्रस्तुत किया और भारत को ‘एकात्म मानववाद’ जैसी प्रगतिशील विचारधारा दिया पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म मथुरा के एक छोटे से गाँव नंगलाचंद्रा भाल में 25 सितंबर 1916 को हुआ था बचपन से ही उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना  पड़ा था सात वर्ष की छोटी अवस्था में ही उनके सिर पर से माता–पिता का साया हट गया परन्तु उन्होंने इन सभी की चिंता किये बिना अपनी पढाई पूरी की कहा जाता है की सोना को जितना ही आग में तपाया जाता है उसकी चमक उतना ही बढ़ती जाती है ठीक उसी प्रकार पंडित जी भी अपनी कठिनाइयों की आग में तपकर और भी चमकते जा रहे थे। पंडित जी राजस्थान बोर्ड से हाई स्कूल की परीक्षा सनˎ 1935 और पिलानी से इंटरमीडियट की परीक्षा सनˎ 1937 में प्रथम श्रेणी से पास किये। दोनों परीक्षाओं में उन्हें स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ राजस्थान के सीकर के महाराज कल्याण सिंह की ओर से उन्हें छात्रवृति दिया गया इसके पश्चात वे स्नातक की पढाई के लिए एस.डी. कालेज, कानपुर चले गए और वहां से वे प्रथम श्रेणी में स्नातक की परीक्षा पास किए लेकिन कुछ कारणों से वे एम.ए की पढाई पूरी नहीं कर सके उसी दौरान वे ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के सम्पर्क में आए और उसके कार्यसेवा और विचारधारा से प्रभावित होकर ‘संघ’ के लिए कार्य करना शुरू कर दिए सनˎ 1942 में वे संघ के पूर्णकालीन कार्यकर्ता बन गए उसके बाद उन्हें लखीमपुर में जिला प्रचारक नियुक्त किया गया दीनदयाल जी कुशल संगठक होने के साथ-साथ एक प्रभावशाली लेखक और पत्रकार भी थे उन्होंने लखनऊ में ‘राष्ट्रधर्म’ प्रकाशन की स्थापना की जिसके फलस्वरूप अपने स्वतंत्र विचारों को प्रस्तुत करने के लिए एक मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ की शुरुआत की इसके आलावा उन्होंने ‘पांचजन्य’ पत्रिका और ‘स्वदेश’ दैनिक की शुरुआत की सनˎ 1951 में जब डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की तब पंडित दीनदयाल उसमें सक्रिय हो गए और उतरप्रदेश में उनकों प्रथम महामंत्री बनाया गया बाद में वे भारतीय जनसंघ के अखिल भारतीय ‘महामंत्री’ बनये गए उन्होंने अपना दायित्व इतनी कुशलता के साथ निभाया की डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने उनसे प्रभावित होकर कहा कि - ‘यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाए तो मैं इस देश का राजनीतिक नक्शा ही बदल दूंगा’ पंडित जी को साहित्य से भी लगाव था, शायद इसलिए वे साहित्य से भी जुड़े रहे उनके हिन्दी और अंग्रेजी के लेख विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे कहा जाता है कि- उन्होंने केवल एक बैठक में ही ‘चन्द्रगुप्त नाटक’ लिख डाला था
 
पंडित जी के सिद्धान्तों को समझने के लिए यहाँ एक घटना का जिक्र आवश्यक हैएक बार वे जब रेल यात्रा कर रहे थे, संयोगवश उसी रेलगाड़ी में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वितीय संघ संचालक परम पूजनीय ‘माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर’ जी भी यात्रा कर रहे थे जब गुरुजी को यह पता चला की पंडित जी भी इसी रेलगाड़ी में हैं तो उन्होंने संदेश भेज कर पंडितजी को अपने पास बुलाया पंडितजी आए और लगभग एक घंटे तक द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में गुरूजी के साथ विचार-विमर्श करते रहे विचार-विमर्श के पश्चात् वे आने वाले स्टेशन पर अपने डिब्बे में जाते समय द्वितीय श्रेणी के टी.टी.ई के पास गए और बोले श्रीराम जी मैंने लगभग एक घंटे तक द्वतीय श्रेणी में यात्रा की है, जबकि मेरे पास तृतीय श्रेणी के टिकट है अतः नियमानुसार मेरा एक घंटे का जो किराया बनता है वह ले लीजिये टी.टी.ई ने कहा कोई बात नहीं लेकिन पंडित जी नहीं माने फिर टी.टी.ई विवश होकर हिसाब लगाया और कुछ राशि पंडित जी से ले ली, परन्तु टी.टी.ई यह सोचने पर विवश हो गया कि इमान्दारी का ऐसा आदर्श प्रस्तुत करने वाला वह व्यक्ति है कौन? जब कुछ स्टेशन बाद पंडितजी उतरे तो टी.टी.ई ने देखा की सैकडों कार्यकर्ता स्टेशन पर उनके स्वागत के लिए आए हुए है वह चकित हो गया कि ये तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी थे पंडितजी अन्य कार्यो की तुलना में देश की सेवा को सर्व श्रेष्ठ मानते थे उन्होंने कहा था कि- “हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारतमाता है, केवल भारत नहीं, माता शब्द हटा दीजिए तो भारत केवल जमीन का टुकरा मात्र बन कर रह जाएगा
  
 दीनदयाल जी के द्वारा निर्मित राजनैतिक जीवन दर्शन का पहला सूत्र है- “भारत में रहने वाला और इसके प्रति ममत्व की यह भावना रखने वाला मानव समूह एक जन है उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन, सब भारतीय संस्कृति है इसलिय भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यही संस्कृति है इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा” पंडित दीनदयाल जी की एक और बात उन्हें सबसे अलग करती है- उनकी सादगी पंडित दीनदयाल जी राष्ट्रनिर्माण के कुशल शिल्पियो में से एक थे व्यक्तिगत जीवन तथा राजनीति में सिद्धांत और व्यवहार में समानता रखने वाले इस महान व्यक्ति को काफी विरोधों का सामना करना पड़ा था लेकिन राष्ट्रभक्ति ही जिसका उद्देश्य हो, ऐसे महापुरुष को उसके पथ से कोई भी विचलित नहीं कर सकता है

‘मानव एकात्मवाद’- मानव जीवन और सम्पूर्ण सृष्टी, एकमात्र सम्बन्धों का दर्शन है इसका वैज्ञानिक विवेचन पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने किया था मानव एकात्मवाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मार्गदर्शक दर्शन है यह दर्शन पंडित जी के 1965 के मुंबई में दिये गये चार व्याख्यानों में सामिल था वहां उपस्थित सभी प्रतिनिधिओं ने एक स्वर से एकात्म मानव दर्शन को स्वीकार किया एकात्म मानववाद एक ऐसी धारणा है जिसके केंद्र में व्यक्ति, व्यक्ति से जुड़ा हुआ एक परिवार, परिवार से जुड़ा एक समाज, जाति, राष्ट्र, विश्व और अनंत ब्रह्माण्ड समाहित है इस प्रकार पंडित जी का दर्शन भारत की प्रकृति से जुड़ा हुआ दर्शन है जिस दिन इस दर्शन पर विचार कर पूरा देश एक साथ जुड़ जाएगा वो दिन भी अब आने के लिए तैयार खड़ी है पंडित जी की असमय मृत्यु से यह बात तो स्पष्ट हो जाती है कि जिस धरती पर पंडित जी भारतीय राजनीति को ले जाना चाहते थे, वह धरती हिन्दुत्व की थी, जिसका संकेत उन्होंने अपनी कुछ कृतियों में दे दिया था उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकों के नाम- 1. ‘दो योजनायें’ 2. ‘राजनितिक डायरी’ 3. ‘भारतीय अर्थनीति का अवमूल्य’ 4. ‘सम्राट चन्द्रगुप्त’ 5. ‘जगतगुरु शंकराचार्य’ 6. ‘एकात्म मानववाद’ और 7. ‘राष्ट्र जीवन की दशा’ 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय रेलवे यार्ड में उनकी लाश मिलने से सारे देश में शोक की लहर दौड़ गई थी और फिर एक बार हत्यारिन भारतीय राजनीति ने एक महान आत्मा के सांसारिक यात्रा का अंत कर दिया 

सन्दर्भ:

  1. विकिपीडिया.ऑर्ग
  2. भारत डिस्कवरी.ऑर्ग
  3. जागरणजंक्सन.कॉम

Tuesday 10 October 2017

हरितालिका व्रत ‘तीज’


भारतवर्ष में कई संस्कृतियों का समावेश है ऐसे में कई विचारधाराओं एवम् मान्यताओं के आधार पर भिन्न भिन्न व्रत और त्यौहार मनाये जाते हैं। यहाँ मैं उस व्रत के विषय में बताने जा रही हूँ जिसे सुनते ही सभी सुहागिन स्त्रियाँ खुशी से झूमने लगतीं हैं सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति के लम्बी उम्र की कामना करतीं हैं यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन मनाया जाता है इस दिन सुहागिन और कुवांरी युवतियां गौरीशंकर की पूजा करती हैं इसे हरितालिका व्रतकहा जाता है यह त्यौहार विशेषकर महारास्ट्र, उतरप्रदेश के पूर्वांचल भाग और बिहार में मनाया जाता है इस व्रत के दिन स्त्रियाँ निर्जला उपवास रहतीं हैं तथा अगले दिन पूजन के पश्चात् ही वे अपना व्रत खोलतीं हैं इस व्रत से जुड़ी हुई यह मान्यता है कि इस व्रत को करनेवाली स्त्रियाँ पार्वती जी के समान ही सौभाग्यवती होतीं हैं इसलिए विवाहित स्त्रियाँ अपने सुहाग की अखंडता के लिए और अविवाहित युवतियां मन चाहा वर पाने के लिए हरितालिका व्रत करती है इस व्रत को हरितालिका इसलिए कहा जाता है क्योंकि पार्वती जी के सखिओं ने उन्हें, उनके पिता के घर से हर कर (चुरा कर) घनघोर जंगल में ले गई थीं वहाँ पर पार्वती जी ने छिपकर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर पार्वती जी को शिव जी ने आशिर्वाद दिया और पति के रूप में मिलने का वरदान दिया हरतशब्द हरनया हरनाक्रिया से लिया गया है अथार्त हरण करना और यहाँ आलिकाशब्द आलिअथार्त सखी शब्द से लिया गया है इसप्रकार इस व्रत का नाम हरतालिका पड़ा

इस ब्रत में सभी हम उम्र सुहागिने एक साथ मिलकर पूजा अर्चना करती हैं जिससे सहेलियों का भी महत्व यहाँ बढ़ जाता है सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भागवान शिव के लिए रखा था इस दिन व्रती स्त्रियाँ सूर्योदय से पहले उठकर सरगही खाती हैं और बाद में पुरे दिन भर उपवास रखकर शाम के समय नया वस्त्र पहनकर पूरी सोलहों श्रृंगार करती है और शंकर पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजा पाठ करतीं है व्रत के नियमानुसार स्त्रियाँ पूरी रात सोती नहीं हैं सभी सुहागिने मिलकर भजन कीर्तन करतीं हैं और सुबह सूर्योदय से पूर्व नहाधोकर, पूजाअर्चना करने के बाद सुहाग के सभी समान और सत्तु लेकर व्रत खोलने के लिए तैयार होती हैं पहले सुहाग के सभी समान को छूकर रख देतीं हैं जिसे बाद में पंडित को दान में दे दिया जाता है फिर सत्तु को पांच बार आंचल में लेकर फांकते है और इस तरह से 24 घंटे का अपना निर्जला उपवास तोड़ती हैं वैसे तो अलगअलग क्षेत्रों में लोग अपनीअपनी अलग विधियों का पालन करते हैं फिर भी भाव और उद्देश्य एक होने के कारण उनकी प्रक्रिया लगभग एक जैसी होती है सबसे बड़ी बात यह है कि एक बार इस व्रत को शुरू करने के बाद जीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना पड़ता है अगर किसी कारण वश व्रत छुट जाता है तो दुबारा नहीं किया जा सकता है इस व्रत का यही विधान है

हमारे देश के कई राज्यों में सुहागिन स्त्रियां पति के दीर्घ आयु के लिए अलग - अलग तरह से व्रत करती हैं सभी व्रतों से सम्बंधित कोई न कोई कहानी जुड़ीं हैं सभी के व्रतों में एक समानता यह है कि इसमें शिव और पार्वती की पूजा की जाती है लेकिन मास और तिथि तथा व्रत करने की विधि में थोड़ा-थोड़ा फर्क होता है जैसे कजरी तीज – यह पूर्व भाद्र पक्ष की तृतीय को मनाई जाती है हरियाली तीज इसे श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है गणगौर पूजा जो होलिका दहन के दूसरें दिन चैत्र कृष्ण प्रतिप्रदा से शुरू होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलता है करवा चौथ यह पर्व पंजाब हरियाणा, राजस्थान तथा उतरप्रदेश के कुछ भागों में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है 

हमारा भारतवर्ष विभिन्नता में एकता का देश है सौहार्द एवं आपसी सहयोग के कारण ही हमारे देश की विश्व में एक अलग पहचान है यहां के पर्व-त्योहारों की समृद्ध परंपराएं की एक अपनी विशेष पहचान है इन सभी त्योहारों में हमारे देश की सांस्कृतिक विविधता झलकती है




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रामकृष्ण परमहंस

भारत एक विशाल देश है। इस देश में अनेक भाषा भाषी, संस्कृति तथा जाति के लोग रहते हैं। यहाँ प्रकृति ने प्राणियों के लिए अनेक सुख सुविध...